Sunday, January 25, 2015

Yoga for Heart(हार्ट के लिए योग)

             
     
          योगा एक स्वस्थ दिल को बनाए रखने में  प्रमुख भूमिका प्रदान करते है। एक स्वस्थ आहार के साथ योग दिल की दीर्घायु सुनिश्चित करता है। योग में कई आसन है जो दिल के कामकाज को बहेतर बनाने में उपयोगी है। 
       प्राणायाम और श्वास व्यायाम Maditaiton  के साथ किया जा सकता है। मन और शरीर को शांत रखन में इन दोनों तकनीक बहुत उपयोगी है। इसके आलावा तनाव को मुकत रखके दिल की समुचित कार्य को बनाये रखने में सहायक देखा जाता है।  
       दिल के समुचित कार्य को बनाये रखने में मदद कर सकते है जो कई मुद्राए रहे है।  उनमे से कुछ Paschimottamasana,Dhnurasana,Urdhwahasthasana,Baddha konasan आदि शामिल है। यह पेट की दीवारो को मजबूत और शरीर में हर्निया को रक्षा करता है। 


                       
                       उर्ध्वा हस्तासना(Urdhwa hasthasana)

विधिः 
१.     सीधे खड़े होकर दोनों हाथों की अँगुलियों को आपस में डालते हुए सर पर रखिये। पैरो को मिलकर रखें। 

२.     श्वास अन्दर भरते हुए हाथों को ऊपर की और तानिए तथा एड़ियों को भी साथ - साथ ऊपर उठावें। श्वास छोड़ते हुए निचे आ जावे। हाथ सर पर ही रहेंगे इस प्रकार ५-६ चक्र करें। 





पश्चिमोत्तनासन(PASCHIMOTANASNA)

विधिः 
१.     दण्डासन में बैठकर दोनों हाथों के अंगुष्ठो व् तर्जनी की सहायता से पैरो के अंगूठो को पकड़िये। 

२.     श्वास बहार निकालकर सामने झुकते हुए सिर को घुटनों के बीच लगाने का प्रयत्न कीजिये। पेट को उड़ियान बन्ध की स्थिति मे रख सकते है। घुटने-पैर सीधे भूमि पर लगे हुए तथा कोहनियाँ भी भूमि अपर टिकी हुई हों। इस स्थिति में शक्ति अनुसार आधे से तीन मिनिट तक रहें। फिर श्वास छोड़ते हुए वापस सामान्य स्थिति मे आ जाएँ।


 
                                                                                              
  
                           लाभ: 

     पेट की पेशियों में संकुचन होता है। जठारग्नि को प्रदीप्त करता है व् वीर्य सम्बन्धी विकारो को नष्ट करता है। कदवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण अभ्यास है। 



बद्धक़ोणासना(Baddha konasana)

विधिः 
        दायें पैर को मोड़कर बाये जंघे पर रखें। बांयें हाथ से दाएँ पंजे को पकड़ें तथा दाएँ हाथ को दाहिने घुटने पर रखें।  अब दाहिने हाथ को दाएँ घुटने के निचे लगाते हुए घुटने को ऊपर उठाकर छाती से लगाएँ तथा घुटने को दबाते हुए जमीं पर टिका दें। इसी प्रकार इस अभ्यास को विपरीत बायें पैर को मोड़कर दायें जंघे पर रखकर पूर्ववत करें। अंत में दोनों हाथों से पंजो को पकड़कर घुटनो को भी स्पर्श करायें ऊपर उठायें। इस प्रकार कई बार इसकी आवृति करें (बटर फ्लाई ) । 





लाभ:

१.     गुर्दे( Kidney) एवं नितम्ब जोड़ को स्वस्थ करने के लिए यह अभ्यास उत्तम है तथा वहां बढ़ी हुई चर्बी को कम  करने के लिए उत्तम है। 
२.     मासिक धर्म की असुविधा में मदद करता है और पाचन शिकायतों और अंडाशय, प्रोस्टेट ग्रंथि, गुर्दे और मूत्राशय के स्वास्थ्य में सुधार में मददगार है। पेट के अंगों को उत्तेजित करता है। योग ग्रंथों के अनुसार, थकान दूर करके, पीठ के निचले हिस्से को खोलने में मदद करता है और कटिस्नायुशूल में राहत मिलती है। 




धनुरासन (Dhanurasan)

विधिः 

१.     पेट के बल लेट जाइए। घुटनों से पैरों को मोड़ कर एड़ियां नितम्ब के ऊपर रखें। घुटने एवं पंजे आपस में मिले हुए हों। 

२.     दोनों हाथों से पैरों के पास से पकड़िये। 

३.     श्वास को अन्दर भरकर  घुटनों एवं जंघावो को एक के बाद एक उठाते हुये ऊपर की ऑर तने , हाथ सीधे रहें। पिछले हिस्से को उठाने  के बाद पेट के ऊपरी भाग छाती,ग्रीवा एवं सर को भी ऊपर उठाइए। नाभि एवं पेट के आसपास का भाग भूमि पर ही टिके रहे। शेष भाग ऊपर उठा होना चाहिए। शरीर की आकृति धनुष के समान हो जाएगी। इस स्थिति में १० से २५ सेकंड तक रहें। 

४.     श्वास छोड़ते हुए क्रमशः पूर्व स्थिति में आ जाइए। श्वास-पश्वास के सामान्य होने पर ३ - ४  बार करे।   


लाभ: 

      नाभि का टलना दूर होता है। स्त्रियों की मासिक धर्म(menstrual) सम्बन्धी रोग में लाभ मिलता है।कमरदर्द,सर्वाइकल(Cervical), स्पोंडोलाइटिस,स्लिपडिस्क(SLEEPDISC) समस्त मेरुदण्ड(Spine) के रोगो में ये आसन लाभकारी है। 



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