आसन

आसनोउपयोगी नियम:(Rules of Asan)

१.     समयआसन प्रातःसायं दोनों समय कर सकते है। यदि दोनों समय नहीं कर सकते तो प्रातः काल समय कर सकते हो। प्रातः खली पेट तथ दो पहर के भोजन के लगभग ५-६ घंटे बाद सायंकाल आसन कर सकते है।

२.     स्थान-वेशभूषा : स्वस्छ,शान्त,एवं एकांत स्थान आसान के लिए उत्तम है। यदि बाद,तालाब,या पानी के समीप हो तो उत्तम है। यदि घरमे आसन-प्राणायाम करते हो उस स्थान को दीपक,गूगल आदि जलाकर सुगन्धित करले। आसन करते समय कम एवं सुविधाजनक होने चाहिए।

३.     भोजन: भोजन आसन के लगभग आधे घण्टे  के बाद करे। आसन के बाद चाय नहीं पीनी चाहिये।

४.     श्वास-प्रश्वास का नियम: आसन करते समय नियम है की आगे की ओर झुकते समय श्वास बाहर निकलते है तथा पीछे की ओर झुकते समय श्वास अन्दर भर कर रखते है। श्वास नासिका से लेना ओर छोड़ना  चाहिए।

५.     विश्राम: आसन करते हुए जबजब थकान हो तब-तब शवासन या मकरासन में विश्राम करना चाहिये।पसीना आने पर तौलिये से पोंछले। योगासनो का अभ्यास १५-२० मिनिट बाद भी शरीर का तापमान सामान्य होने पर स्नान कर सकते है।  जिन व्यक्तियों का कभी अश्थी भंग हुवा हो ,वे कठिन आसनो का अभ्यास कभी  ना करे। 

सर्वांगासन(Sarvangasana)
विधि :
१.  पीठ के बल सीधा लेट जाये।  पैर जोड़ के रखे,हाथो को दोनों और बगल में सटाकर हथेलियाँ जमीं की ओर करके रखे. 

२. स्वास अंदर भरकर पैरो को धीरे धीरे ३० डिग्री , फिर ६० डिग्री  और अंत में ९० डिग्री  तक उठाए।पैरो को उठाते समय हाथो का सहारा ले। यदि  पैर सीधा न हो तो हाथो को उठाकर  कमर के पीछे रखे। पैरो को सीधा मिलाकर रखे और कोहनियाँ भूमि पर टिकी हुए रखे। आँखे बंद एवं पंजे ऊपर तने हुए रखे। धीरे -धीरे 
ये आसान २ मिनिट से शरू करके आधे घंटे तक करने कोशिश करे। 

३. वापस आते समय जिस क्रम से उठे थे उसी क्रम से धीरे धीरे वापस आये। जितने समय तक सर्वांगासन किया जाये उतने ही समय शवाशन में विश्राम करे।  

लाभ :
१.  मोटापा ,दुर्बलता,कदवृद्धि में लाभ मिलते है ,एवं थकान आदि विकार       दूर होते है। 
२. इस आसन से थाइरोड को सक्रीय एवं पिच्युरेटी ग्लैड के क्रियाशील होने    से यह कद वृद्धि में उपयोगी है। 

हलासन(HALASANA) 

विधि:
१.     पीठ के बल लेट जायें,अब श्वास अंदर भरते हुए धीरे से पैरो को उठाये। पहले ३०,६० डिग्री फिर ९० डिग्री तक उठाने के बाद पैरो को सीर के           पीछे की और पीठ को भी ऊपर उठाते हुए श्वास को बहार निकालते हुए         ले जाये। 
२.     पैरो को सर के पीछे भूमि पर टिका दें। प्रारम्भ में हाथो को कमर के पीछे लगा दे। पूरी स्थिति में हाथ भूमि पर ही रखे,इस स्थिति में ३०         सेकंड रखे। 


३.     वापस जिस क्रम से ऊपर आए थे उसी क्रम से भूमि को हथेलियों को दबाते हुए पैरो को घुटनो से सीधा रखते हुए भूमि प्रर रखे। 

 

लाभ :

१.     थाइराइड ग्रंथि को चुस्त और मोटापा,दुर्बलता आदि को दूर करता है। 
२.    मेरुदण्ड को स्वस्थ,लचीला बना कर पृष्ठ भाग की मास  पेशियों को निरोगी बनता है। 
३.   गैस, कब्ज,डायबिटीस,यकृत-वृद्धि एवं हदय रोग में लाभकारी है। 

सावधानियाँ :
१.   उच्च रक्तचाप,स्लिपडिस्क,सर्वाइकल, टी.बि. आदि मेरुदण्ड के रोगी इस आसान को ना करे।  


उत्तानपादासन(Utanpadasan) 

विधि:
१.  पीठ  के बल लेट जाये। हथेलियां भूमि की और, पैर सिधे, पंजे मिले हुऐ हों। 
२.  अब श्वास अन्दर भरकर पैरों को १ फुट तक धीरे-धीरे ऊपर उठायें। कुछ,समय तक इसी स्थिति मे बने रहें। 

३.  वापस आते समय धीरे-धीरे पैरों को नीचे भूमि पर टिकाये, ज़टके के साथ नहीं। कुछ विश्राम कर फिर यही क्रिया कीजिए। इसे ३-६ बार करना चाहिए।
४. जिनको कमर मे अधिक दर्द रहता हो। वे एक-एक पैर से क्रमशः इस अभ्यास को करें। 




लाभ:
१.  यह आसन आँतो को सबल एवं निरोग बनाता है तथा कब्ज, गैस, मोटापा आदि को दूर कर जठराग्नि को प्रदीप्त करता है। 
२.  नाभि का टलना,पेटदर्द,हदयरोग एवं श्वास रोग में भी लाभदायी है। कमरदर्द में विशेष लाभदायी है। 


कर्ण पीडासन(karn Pidasan)
 विधि:
          हलासन की तरह पैरों को सिर के पीछे टिकाकर दोनों घुटनों को जुकाकर कोनों से लगा दे।  शेष विधि हलासन के समान है। 



लाभ:
         सभी लाभ हलासन के समान है।  कर्ण रोगो मे विशेष लाभकारी होने से इस आसन का नाम कर्ण पीडासन है। 


नौकासन (Navkasan) 

विधि:
१.      दोनों हाथों से ऊपर रखकर सीधे लेट जाये। अब श्वास अंदर भरते हुए पहले सिर एवं कंधो को ऊपर उठाये फिर पैरो को भी ऊपर उठाये। हाथ,पैर एवं सिर समांतर नाव  की तरह उठे हुए रखे। 
२.      इस स्तिथि मे कुछ समय रूककर धीरे-धीरे हाथ-पैर एवं सिर को भूमि पर श्वास बाहर निकालते हुए ले आए। इस प्रकार ३ से ६ बार तक आवृत्ती कर सकते है। 


 


लाभ:
१.      यह आसन आंतो के लाभदायी है एवं कब्ज,गैस,मोटापा आदि को दूर करता है।  
२.     हृदय एवं फेफड़े भी प्राण वायु के प्रवेश से सबल बनते है। 
३.     आंत्र,आमाशय,अग्नाशय एवं यकृत आदि के लिये उत्तम है।   


पवन मुक्तासन (Pawan muktasan)

विधि:
१.      सीधे लेट कर दाये  पैर के घुटने को छाती पर रखे।
२.      दोनों हाथो को,अंगुलियों एक दूसरे में भीड़ते हुए घुटने पर रखे ,श्वास बाहर निकालते हुए घुटने को दबाकर छाती से लगाये एवं सर को उठाते हुए घुटने से नासिका स्पर्श करे,करीब १० से ३० सेकंड तक श्वास को बाहर रोकते हुए इस स्थिति में रहकर फिर पैर को सीधा कर दे।


                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      ३.       इसी तराह दूसरे पैर से करे। फिर दोनों पैरो से एक साथ करे। इस प्रकार ३ से ५ बरी करे। 

४.      दोनों पैरो को पकड़ के शरीर को आगे-पीछे-दये-बाये लुढ़काए। 

लाभ:   
१.     ये आसन वायुविकार ,स्त्री रोग अल्पावर्त,कष्टार्त्तव एवं गर्भाशय सम्बन्धी रोगो के लिए लाभदायी है। 
    २.     मोटापा,अम्लपित्त,हदयरोग,गठिया एवं कटी पीड़ा में लाभदायी है।

कन्धरासन (Kandhrasan)
विधि :
१.   सीधे लेटकर दोनों घुटनों को मोड़कर पैरों को नितम्ब के समीप रखिए।
२.  हाथों से पैर की ऐड़ी के उपरी हिस्से को पकड़िए। 
३.   श्वास अन्दर भरकर कमर एवं नितम्बों को उठाइए। कंधे सिर एवं एड़ियाँ भूमि पर टिके रहे। इस स्थिति में १५-२० सेकण्ड रुकिये। 
४.   वापस आते समय श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे कमर को भूमि पर टिकाइये। इस प्रकार ३-४ बार दोहराहिये। 






लाभ :
१.   पेट दर्द, कमर दर्द के लिए सर्वोत्तम आसन है।
२.   बन्ध्यात्व,मासिक विकृत्ति एवं श्वेत प्रदर के लिए लाभदाई है।  


दिर्घ नौकासन 


 विधि:

१.     शवासन  में लेटकर दोनों हाथों को सिर के पीछे मिलाते हुए सिधा कर दें। 
२.     श्वास अन्दर  भरकर पैर,सिर एवं हाथ तीनों धीरे-धीरे करीब एक फुट ऊपर उठाइए नितम्ब एवं पीठ का निचला भाग भूमि पर लगा रहे। वापस आते समय श्वास छोड़ते समय धीरे-धीरे  हाथ,पैर सीर को भूमि पर
टिकाईये। 

लाभ: 

१.     पेट तथा  पीठ के लिए लाभदायी है। 
२.     हदय को मजबूत बनाने वाला श्रेष्ठ आसन है। 
३.     स्त्रीयो के लिए ये आसन उत्तम है -यह उनकी देह को सुडौल  बनता है।


पृष्ठतानासन(PRUSHTHTANASAN)


विधि :
१.     पेट के बल लेटजाये। होथों को सामने फैलाकर हथेलियाँ जमीं की ओर करते हुए एक दूसरे के ऊपर रखें।  पैर सीधे तथा पंजे पीछे की ओर तने हुए हों। माथा दोनों हाथों के बीच टिका हुआ हो।
२.     श्वास अंदर भरकर हाथों को आगे की ओर खींचिए तथा पैरों को पीछे की ओर तानिए। शरीर को स्थिर रखते हुए ही यह क्रिया हो। पृष्ठ भाग में कम्पन होगा।  श्वास को बाहर छोड़ते हुए शरीर को ढीला छोड़ दें। 


लाभ : 
पृष्ठ भाग के सम्पूर्ण नस-नाड़ियों को आरोग्य मिलता है। 


पद्मासन (padmasan)



विधि:
१.      दण्डासन में बैठकर दाहिने पैर को बाये पैर की जंघा पर रखे। इसी प्रकार बायें पैर को दाहिने जंघे पर स्थिर करें।  मेरुदण्ड सीधा रहे। सुविधानुसार बाएं पैर को दायें पैर की जंघा पर भी रख कर दायें पैर को बाएं जंघा पर स्थिर कर सकते है। 
२.      दोनों हाथों की अज्जलि बनाकर (बायाँ  हाथ निचे दायां हाथ ऊपर) गोद में रखें। नासिकाग्र अथवा किसी एक स्थान पर मन को केंद्रित करके इष्ट देव परमात्मा का ध्यान करें। 
३.      प्रारम्भ में एक दो मिनिट तक करें।  फिर धीरे-धीरे समय बढ़ाएं। 

लाभ :
      ध्यान के लिए उत्तम आसान है। मन की एकाग्रता व् प्राणोत्थान में सहायक है। जठरग्नि कप तीव्र करता है। वातव्याधि में लाभदायक हैं। 


बद्ध पद्मासन(Baddha Padmasana)



विधि :
१.     पद्मासन में बैठकर बाएं हाथ को पीठ के पीछे से घुमाकर बायें पैर का अंगूठा पकड़ें , इसी प्रकार दायें हाथ को पीछे से लेते हुए दायें पैर का अंगूठा पकड़ें। 
२.     कमर व् रीड की हड्डी सीधी रहे। आँखे बंध रखकर यथाभिमत मन को एकाग्र करे। 

लाभ :
      माताओं ऐवं पुरूषों की छाती का विकास कर सुन्दर बनता है। हाथ,कंधे एवं सम्पूर्ण पृष्ठ भाग के लिए उपयोगी है। 


योग मुद्रासन (YOG MUDRASAN)





विधिः 
१.      पद्मासन में बैठकर दोनों हाथों को पीठ के पीछें लेजाकर दाएं हाथ से बाएं हाथ को कलाई को पकड़ें। 
२.      श्वास बाहर छोड़ते हुए भूमि पर ठोड़ी स्पर्श करें ,दृश्टि सामने रहे। ठोड़ी यदि भूमि पर नहीं लगती है तो यथाशक्ति सामने झुकें। 

लाभ :
        पेट के लिए उत्तम आसन है। जठराग्नि को प्रदीप्त करता है तथा गैस,अपचन व् कब्ज आदि रोगो में लाभ मिलता है। पेन्क्रियाज को क्रियाशील करके डायबिटीज को नियंत्रित करने में लाभकारी है। 


मत्स्यासन(MATSYASAN)


विधिः
१.      पद्मासन में स्थिति मैं बैठकर हाथों से सहारा लेते हुये पीछे कोहनियाँ टीकाकार लेट जाइए।
२.      हथेलियों को कंधे से पीछे टेककर उनसे सहारा लेते हुये ग्रीवा को जितना पीछे मोड़ सकेते है मोड़िये। पीठ और छाती ऊपर उठी हुई तथा घुटने भूमि पर ठीके हुए हों।
३.      हाथों से पैर के अंगूठे पकड़ कर कोहनियों को भूमि पर टिकाइये। श्वास अन्दर भरकर रखें।




४.      आसन छोड़ते समय जिस स्थिति में शरू किया था ,उसी स्थिति में वापस आये और शवासन मैं लेट जाये।
 लाभ :
१.      पेट के लिये उत्तम आसान है। आंतो को सक्रिय करके कब्ज को दूर करता है। 
२.      थाइराइड ,पैरा थाइराइड एवं एड्रिनल को स्वस्थ बनाता है। 
३.      सर्वाइकल पेन या ग्रीवा की पीछे की हड्डी बढ़ी हुई होने पर लाभदायक है। 
४.      नाभि टालना दूर होता है। फेफड़ों के रोग दमा-श्वास आदि की दूर करता है। 


वज्रासन(VAJRASAN)

विधिः 
१.      दोनों पैरों को मोड़कर नितम्ब के निचे इस प्रकार रखें  एड़ियाँ बहार की ओर निकली हुई तथा पंजे नितम्ब से लगे हुए हो।
२.      इस स्थिति में पैरों के अंगूठे एक दूसरे से लगे हुए होंगें। कमर,ग्रीवा एवं सिर सीधे रहें। घुटने मिले हुए हों। हाथों को घुटनों पर रखें।



लाभ:
      भोजन के करने के बाद किया जानेवाला यह एक मात्र आसन है। यह आसन करने से अपचन ,अम्लपित्त,गैस,कब्ज के लिए लाभकारी है। भोजन के बाद ५ से १५ मिनिट तक करने से भोजन का पाचन ठीक से होता है। ये आसन  घुटनो की पीड़ा में लाभदाई है। 


त्रिकोणासन(TRIKONASNA)

१.     दोनों पैरो के बीच में लगभग डेढ़ फुट का अन्तर रखते हुए सीधे खड़े हो जाएँ। दोनों हाथ कंधो के समानान्तर पाश्व भाग मे खुले हुए हों। 
२.     श्वास अन्दर भरते हुए बाएं हाथ को सामने से लेते हुए बाएं पंजे के पास भूमि पर टिका दें अथवा पंजे को एड़ी का पास लगायें तथा दाएं हाथ को ऊपर की तरफ उठाकर गर्दन को दाए ओर घुमाते हुए दाए हाथ को देखें ,फिर श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आकर इस तरह अभ्यास को बार बार करें। 


लाभ:    कटी प्रदेश लचीला बनता है। पाश्वा भाग की चर्बी को काम करता है। छाती का विकास होता है। 

पश्चिमोत्तनासन(PASCHIMOTANASNA)



विधिः 

१.     दण्डासन में बैठकर दोनों हाथों के अंगुष्ठो व् तर्जनी की सहायता
से पैरो के अंगूठो को पकड़िये। 


२.     श्वास बहार निकालकर सामने झुकते हुए सिर को घुटनों के
बीच लगाने का प्रयत्न कीजिये। पेट को उड़ियान बन्ध की स्थिति मे 

रख सकते है। घुटने-पैर सीधे भूमि पर लगे हुए तथा कोहनियाँ भी 

भूमि अपर टिकी हुई हों। इस स्थिति में शक्ति अनुसार आधे से तीन 

मिनिट तक रहें। फिर श्वास छोड़ते हुए वापस सामान्य स्थिति मे आ 

जाएँ।



                                                                                              
  
 लाभ: 

    
पेट की पेशियों में संकुचन होता है। जठारग्नि को प्रदीप्त करता है व् 

वीर्य सम्बन्धी विकारो को नष्ट करता है। कदवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण 

अभ्यास है। 


मर्कटासन(Markatasan)-२

मर्कटासन(Markatasan)-२ 
विधिः 

१.     सीधे लेटकर दोनों हाथों को कंधों के साथ समानान्तर फैलाइए। हथेलियाँ आकाश की ओर खुली हों।दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर नितम्बों के पास रखें। पैरों में लगभग डेढ़ फुट का अन्तर हो। 

२.     दायें घुटनो को दाए और जुकाते हुए भूमि पर टिका दें। इतना झुकाइए की बायां घुटना दाएं पंजे के पास पहुंच जाये तथा बाएं घुटने को भी दाई ओर दाएं घुटने के पास भूमि पर टिका दीजिए। गर्दन को बाई ओर मोड़कर रखें। इस तरह दूसरे पैर से भी करें। 


लाभ :
         कमरदर्द,सर्वाइकल(Cervical), स्पोंडोलाइटिस,स्लिपडिस्क(SLEEPDISC),सियाटिका(SIYATIKA) में विशेष लाभकारी हैं। पेटदर्द(Abdominal 

pain),दस्त(diarrhea),कब्ज(constipation) एवं गैस को दूर करता है। नितम्ब(hip), जोड़ो(joint) के दर्द में लाभकारी है। 









गोमुखासन(Gomukhasana) 


विधि:

 १.     दण्डासन में बैठकर बाएँ पैर को मोड़कर एड़ी को दाएँ नितम्ब के पास रखें अथवा एड़ी पर बैठ भी सकते हैं। 

२.     दाएँ पैर को मोड़कर बायें पैर के ऊपर इस प्रकार रखें की दोनों घुटने एक दूसरे से स्पर्श करते हुए हों। 

३.     दायें हाथ को ऊपर पीठ की और मोड़िए तथा बाएं हाथ को पीठ के पीछे से लेकर दायें हाथ को पकड़िए। गर्दन एवं कमर सीधी रखें। 

४.     एक और करने के बाद विश्राम करके दूसरी ऑर इसी प्रकार करें। 





लाभ: 

            धातु रोग,बहुमूत्र एवं स्त्री रोग में लाभदायी है। अंडकोषवृद्धि एवं आंत्रवृद्धि  तथा यकृत,गुर्दे  वक्षस्थल को बल देता है। संधिवात एवं गठिया को दूर करता है। 



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