Thursday, January 15, 2015

उपविस्ताकोनाआसना(Upviastakonasna)



विधिः 
१.     दण्डासन में बैठकर पैरों को दोनों ओर पाश्व भागों में जितना फैला सकते है ,फैलाइए। 
२.     दोनों हाथों से पैरों के अंगूठो को पकड़ कर श्वास बाहर निकले हुये छाती एवं पेट को भूमि पर स्पर्श कीजिए।  ठोड़ी भी भूमि पर लगी हुई होगी।  इस स्थिति में कुछ देर यथाशक्ति रहकर विधि क्रमांक एक की स्थिति में आ जाये। 



लाभ:    जंघा ,टांगे , कमर। पीठ एवं गुर्दे( Kidney)लाभकारी है  और उदर निर्दोष होकर वीर्य स्थिर होता है। 

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