गुर्दे( Kidney) की कार्यप्रणाली में योग की प्रमुख भूमिका के रूप में देखा जाता है। गुर्दे( Kidney) को नुकसान में कई चरणो में वर्गीकृत किया जाता है। योग केवल प्रारंभिक चरण मे मददगार होना पाया जाता है।
प्राणायाम और ध्यान दोनों गुर्दे के कई विकारो में काबू पाने में मददगार और महत्वपूर्ण व्यवहार कर रहे हैं। इसके अलावा ऊतकों को ऑक्सीजन की आपूर्ति में सुधार और शरीर के सुरक्षा तंत्र में सुधार के लिए उपयोगी है।
यह आसनो से गुर्दे( Kidney) विकारो के संबंधित खिलाफ लड़ने के लिए सक्षम बनाता है। गुर्दे के functionings में सुधार लाने में बहुत मददगार पाए जाते है। प्रमुख आसनो में पश्चिमोत्तमसाना(Paschimottamasana),बद्धकोणासन( Baddha konasana),उपविस्ताकोनासन(Upavishta konasana) और अर्ध मत्स्येन्द्रासन( Ardh matsyendrasana) शामिल है। ये सभी योग मुद्राओ एक अनुभवी योग गुरु या एक Naturopathist से अभ्यास किया जाए।
विधि:
१. दण्डासन में बैठकर बाएं पैर को मोड़कर एड़ी को नितम्ब के पास लगाएँ।
२. दायें पैर को बाएँ के घुटने के पास बाहर की ओर भूमि पर रखें।
३. बाएँ हाथ को दायें घुटने के समीप बाहर की और सीधा रखते हुए दाएँ पैर को पंजे को पकड़ें।
४. दायें हाथ को पीठ के पीछे से घुमाकर पीछे की ओर देखें।
५. इस प्रकार से दूसरी ओर से भी आसन करे।
लाभ:
ये आसन से गुर्दे( Kidney),मधुमेह(Diabetes) एवं कमरदर्द(Spinal cord) लाभदायी है।
विधिः
१. दण्डासन में बैठकर पैरों को दोनों ओर पाश्व भागों में जितना फैला सकते है ,फैलाइए।
२. दोनों हाथों से पैरों के अंगूठो को पकड़ कर श्वास बाहर निकले हुये छाती एवं पेट को भूमि पर स्पर्श कीजिए। ठोड़ी भी भूमि पर लगी हुई होगी। इस स्थिति में कुछ देर यथाशक्ति रहकर विधि क्रमांक एक की स्थिति में आ जाये।
लाभ: जंघा ,टांगे , कमर। पीठ एवं गुर्दे( Kidney)लाभकारी है और उदर निर्दोष होकर वीर्य स्थिर होता है।
विधिः
दायें पैर को मोड़कर बाये जंघे पर रखें। बांयें हाथ से दाएँ पंजे को पकड़ें तथा दाएँ हाथ को दाहिने घुटने पर रखें। अब दाहिने हाथ को दाएँ घुटने के निचे लगाते हुए घुटने को ऊपर उठाकर छाती से लगाएँ तथा घुटने को दबाते हुए जमीं पर टिका दें। इसी प्रकार इस अभ्यास को विपरीत बायें पैर को मोड़कर दायें जंघे पर रखकर पूर्ववत करें। अंत में दोनों हाथों से पंजो को पकड़कर घुटनो को भी स्पर्श करायें ऊपर उठायें। इस प्रकार कई बार इसकी आवृति करें (बटर फ्लाई ) ।
लाभ:
१. गुर्दे( Kidney) एवं नितम्ब जोड़ को स्वस्थ करने के लिए यह अभ्यास उत्तम है तथा वहां बढ़ी हुई चर्बी को कम करने के लिए उत्तम है।
२. मासिक धर्म की असुविधा में मदद करता है और पाचन शिकायतों और अंडाशय, प्रोस्टेट ग्रंथि, गुर्दे और मूत्राशय के स्वास्थ्य में सुधार में मददगार है। पेट के अंगों को उत्तेजित करता है। योग ग्रंथों के अनुसार, थकान दूर करके, पीठ के निचले हिस्से को खोलने में मदद करता है और कटिस्नायुशूल में राहत मिलती है।
२. श्वास बहार निकालकर सामने झुकते हुए सिर को घुटनों के बीच लगाने का प्रयत्न कीजिये। पेट को उड़ियान बन्ध की स्थिति मे रख सकते है। घुटने-पैर सीधे भूमि पर लगे हुए तथा कोहनियाँ भी भूमि अपर टिकी हुई हों। इस स्थिति में शक्ति अनुसार आधे से तीन मिनिट तक रहें। फिर श्वास छोड़ते हुए वापस सामान्य स्थिति मे आ जाएँ।
पेट की पेशियों में संकुचन होता है। जठारग्नि को प्रदीप्त करता है व् वीर्य सम्बन्धी विकारो को नष्ट करता है। कदवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण अभ्यास है।
प्राणायाम और ध्यान दोनों गुर्दे के कई विकारो में काबू पाने में मददगार और महत्वपूर्ण व्यवहार कर रहे हैं। इसके अलावा ऊतकों को ऑक्सीजन की आपूर्ति में सुधार और शरीर के सुरक्षा तंत्र में सुधार के लिए उपयोगी है।
यह आसनो से गुर्दे( Kidney) विकारो के संबंधित खिलाफ लड़ने के लिए सक्षम बनाता है। गुर्दे के functionings में सुधार लाने में बहुत मददगार पाए जाते है। प्रमुख आसनो में पश्चिमोत्तमसाना(Paschimottamasana),बद्धकोणासन( Baddha konasana),उपविस्ताकोनासन(Upavishta konasana) और अर्ध मत्स्येन्द्रासन( Ardh matsyendrasana) शामिल है। ये सभी योग मुद्राओ एक अनुभवी योग गुरु या एक Naturopathist से अभ्यास किया जाए।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन(Ardha matsyendrasana)
विधि:
१. दण्डासन में बैठकर बाएं पैर को मोड़कर एड़ी को नितम्ब के पास लगाएँ।
२. दायें पैर को बाएँ के घुटने के पास बाहर की ओर भूमि पर रखें।
३. बाएँ हाथ को दायें घुटने के समीप बाहर की और सीधा रखते हुए दाएँ पैर को पंजे को पकड़ें।
४. दायें हाथ को पीठ के पीछे से घुमाकर पीछे की ओर देखें।
५. इस प्रकार से दूसरी ओर से भी आसन करे।
लाभ:
ये आसन से गुर्दे( Kidney),मधुमेह(Diabetes) एवं कमरदर्द(Spinal cord) लाभदायी है।
उपविस्ताकोनासन(Upavishta konasana)
विधिः
१. दण्डासन में बैठकर पैरों को दोनों ओर पाश्व भागों में जितना फैला सकते है ,फैलाइए।
२. दोनों हाथों से पैरों के अंगूठो को पकड़ कर श्वास बाहर निकले हुये छाती एवं पेट को भूमि पर स्पर्श कीजिए। ठोड़ी भी भूमि पर लगी हुई होगी। इस स्थिति में कुछ देर यथाशक्ति रहकर विधि क्रमांक एक की स्थिति में आ जाये।
बद्धकोणासन( Baddha konasana)
दायें पैर को मोड़कर बाये जंघे पर रखें। बांयें हाथ से दाएँ पंजे को पकड़ें तथा दाएँ हाथ को दाहिने घुटने पर रखें। अब दाहिने हाथ को दाएँ घुटने के निचे लगाते हुए घुटने को ऊपर उठाकर छाती से लगाएँ तथा घुटने को दबाते हुए जमीं पर टिका दें। इसी प्रकार इस अभ्यास को विपरीत बायें पैर को मोड़कर दायें जंघे पर रखकर पूर्ववत करें। अंत में दोनों हाथों से पंजो को पकड़कर घुटनो को भी स्पर्श करायें ऊपर उठायें। इस प्रकार कई बार इसकी आवृति करें (बटर फ्लाई ) ।
लाभ:
१. गुर्दे( Kidney) एवं नितम्ब जोड़ को स्वस्थ करने के लिए यह अभ्यास उत्तम है तथा वहां बढ़ी हुई चर्बी को कम करने के लिए उत्तम है।
२. मासिक धर्म की असुविधा में मदद करता है और पाचन शिकायतों और अंडाशय, प्रोस्टेट ग्रंथि, गुर्दे और मूत्राशय के स्वास्थ्य में सुधार में मददगार है। पेट के अंगों को उत्तेजित करता है। योग ग्रंथों के अनुसार, थकान दूर करके, पीठ के निचले हिस्से को खोलने में मदद करता है और कटिस्नायुशूल में राहत मिलती है।
पश्चिमोत्तमसाना(Paschimottamasana)
विधिः
१. दण्डासन में बैठकर दोनों हाथों के अंगुष्ठो व् तर्जनी की सहायता से पैरो के अंगूठो को पकड़िये।
१. दण्डासन में बैठकर दोनों हाथों के अंगुष्ठो व् तर्जनी की सहायता से पैरो के अंगूठो को पकड़िये।
२. श्वास बहार निकालकर सामने झुकते हुए सिर को घुटनों के बीच लगाने का प्रयत्न कीजिये। पेट को उड़ियान बन्ध की स्थिति मे रख सकते है। घुटने-पैर सीधे भूमि पर लगे हुए तथा कोहनियाँ भी भूमि अपर टिकी हुई हों। इस स्थिति में शक्ति अनुसार आधे से तीन मिनिट तक रहें। फिर श्वास छोड़ते हुए वापस सामान्य स्थिति मे आ जाएँ।
लाभ:
पेट की पेशियों में संकुचन होता है। जठारग्नि को प्रदीप्त करता है व् वीर्य सम्बन्धी विकारो को नष्ट करता है। कदवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण अभ्यास है।
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