Saturday, January 10, 2015

Yoga for gastric troubles



        गैस (Gastric) सभी रोगियों की तुलना में आज करीब आधे से अधिक रोगो में देखा जाता है। गैस्ट्रिक परेशानियों की वजह मुख्य रूप से अनुचित पाचन, तनाव, दोषपूर्ण खानपान की आदतों, धूम्रपान आदि मुख्य रूप से होता है। अम्लता (Acidity) गैस परेशानी के लिए जिम्मेदार देखा जाता है। 
      प्राणायाम या श्वास व्यायाम का अभ्यास शुरू में ही जरुरी है।  फेफड़ों की क्षमता में सुधार लाने के अलावा इस अभ्यास को आसानी से शरीर के सभी ऊतकों को ऑक्सीजन की आपूर्ति को पूरा करते है । 
     इस प्रकार यह पाचन तंत्र सहित सभी प्रणालियों के समुचित कार्य के लिए सक्षम बनाता है। ध्यान (Maditation) अभी तक गैस मुसीबत या इससे संबंधित अन्य लक्षण में लाभदायी है ,जो एक और अभ्यास है। ३० मिनिट तक हर रोज अभ्यास करे ,अनुभवी योग गुरु से सीखा जाना चाहिए।
        गैस्ट्रिक  रोग के लिए उपयोगी मुख्य आसन, सेतुबंध (Setubandh),सर्वांगासन (Sarvangasan),पश्चिमोत्तनासन(paschimottanasana),अपानआसन (Apanasana) ,Marjaryasana शामिल है।




अपानआसन (Apanasana)


         अपने पीठ पर लेट जाये। अपने घुटनो को और पैरो को सीने  की और मोड़े। अपने हाथो को पेरो की मध्यमा पिंडली को पकडे। अपने सिर और कंधे को जमीन पर टिका कर रखे। अपने सर के निचे  कंबल या तकिया रख सकते है। गहरी सांस ले। अपनी सांस में कम  से कम एक या दो मिनिट के लिए आसन करे।
       अच्छा परिणाम  के लिए लगातार अभ्यास करना जरुरी है।


 
   लाभ:
          गैस्ट्रिक प्रॉब्लम के लिए लाभदायी है और अम्लता (Acidity) के लिए उपयोगी है।


मार्जरासन (Marjrasana)

विधिः 
१.      दोनों हाथों की हथेलियों एवं घुटनों को भूमि पर टिकाते हुए स्थिति लीजिये। 




      





२.      अब श्वास अन्दर भरकर छाती और सिर को ऊपर उठाये ,कमर निचे की ओर झुकी हुई हो। थोड़ी देर इस स्थिति में रहकर श्वास बाहर छोड़ते हुए पीठ को ऊपर उठाये तथा सर को निचे झुकायें। 



 लाभ:
       कटी पीड़ा ओर गैस ,कब्ज एवं फेफड़ो को मजबूत करता है और गर्भाशय को बाहर निकलने जैसो रोगो को दूर करता है। 


सेतुबन्ध आसन(Setubandh Asan)


१.     सीधे लेट जाइए। दोनों घुटनों को मोड़कर रखिए।  कटिप्रदेश को ऊपर उठाकर दोनों हाथों को कोहनी के बल खड़े करके कमर के निचे लगाइए। 
२.     अब कटी को ऊपर स्थिर रखते हुए पैरो को सीधा कीजिए। कंधे एवं सर भूमि पर ठीके रहें। 




३.     वापस आते समय नितम्ब एवं पैरो को धीरे-धीरे जमीं पर टेकिए।
हाथों को एकदम कमर से नहीं हटाइए। इस आसान को ४-५ बार किया जा सकता है। 
लाभ:
         स्लिप डिस्क,कमर एवं ग्रीवा-पीड़ा(back and neck) व् उदर(abdominal), गैस्ट्रिक प्रॉब्लम रोगो में विशेष लाभप्रद है।


वज्रासन(VAJRASAN)  

विधिः 
१.      दोनों पैरों को मोड़कर नितम्ब के निचे इस प्रकार रखें  एड़ियाँ बहार की ओर निकली हुई तथा पंजे नितम्ब से लगे हुए हो।
२.      इस स्थिति में पैरों के अंगूठे एक दूसरे से लगे हुए होंगें। कमर,ग्रीवा एवं सिर सीधे रहें। घुटने मिले हुए हों। हाथों को घुटनों पर रखें।




लाभ:
      भोजन के करने के बाद किया जानेवाला यह एक मात्र आसन है। यह आसन करने से अपचन ,अम्लपित्त,गैस,कब्ज के लिए लाभकारी है। भोजन के बाद ५ से १५ मिनिट तक करने से भोजन का पाचन ठीक से होता है। ये आसन  घुटनो की पीड़ा में लाभदाई है। 


पश्चिमोत्तनासन(PASCHIMOTANASNA)


विधिः 
१.     दण्डासन में बैठकर दोनों हाथों के अंगुष्ठो व् तर्जनी की सहायता से पैरो के अंगूठो को पकड़िये। 

२.     श्वास बहार निकालकर सामने झुकते हुए सिर को घुटनों के बीच लगाने का प्रयत्न कीजिये। पेट को उड़ियान बन्ध की स्थिति मे रख सकते है। घुटने-पैर सीधे भूमि पर लगे हुए तथा कोहनियाँ भी भूमि अपर टिकी हुई हों। इस स्थिति में शक्ति अनुसार आधे से तीन मिनिट तक रहें। फिर श्वास छोड़ते हुए वापस सामान्य स्थिति मे आ जाएँ।


 
                                                                                              
  
                           लाभ: 

     पेट की पेशियों में संकुचन होता है। जठारग्नि को प्रदीप्त करता है व् वीर्य सम्बन्धी विकारो को नष्ट करता है। कदवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण अभ्यास है। 

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