विधिः
१. वज्रासन में बैठकर हाथों को पाश्व भाग में रखकर उनकी सहायता से शरीर को पीछे झुकाते हुए भूमि पर सर को टिका दीजिये। घुटने मिले हुए हों तथा भूमि पर ठीके हुए हों।
२. धीरे-धीरे कंधो,ग्रीवा एवं पीठ को भूमि पर टिकाने का प्रयत्न कीजिये। हाथों को जंघाओं पर सीधा रखे।
३. आसन को छोड़ते समय कोहनियों एवं हाथों का सहारा लेते हुये वज्रासन में बैठ जाइए।
लाभ:
१. इस आसन से पेट के निचे वाला भाग खींचता है जिससे बड़ी आंत सक्रीय होने से कोष्ठबद्धता मिटती है।
२. नाभि का टलना दूर करता है , गुर्दो के लिए भी लाभप्रद है।
No comments:
Post a Comment