योग साधना में अष्टांगो के आलावा हस्त मुद्राओं का भी विशेष महत्व है। मुद्राएं आसनो का विकसित रूप है। हस्त मुद्राओं में इन्द्रियों की गौणता और प्राणो की प्रधानता होती है। इस पृथ्वी पर मुद्रा के समान सफलता देने वाला अन्य कोई कर्म नहीं है। मुद्राएं दो प्रकार की है :
१. तत्वों का नियमन करने वाली हस्त मुद्राएं
२. प्राणोत्थान व् कुण्डलिनी जागरण में सहायक मुद्राएँ
तत्वों का नियमन करने वाली हस्त मुद्राएं
यह समस्त ब्रह्माण्ड पंचतत्वों से निर्मीत है। हमारा देह भी पंच तत्वों का संघात है। शरीर की पांच अंगुलियाँ इन पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है। अंगुष्ठ अग्नि का ,तर्जनी वायुका,मध्यमा आकाश का ,अनामिका पृथ्वीका का तथा कनिष्ठा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। मुद्रा के अनुसार इन्ही पांच तत्वों के समन्वय से शरीर कि आंतरिक ग्रंथियों,अवयवो तथा उनकी क्रियाओं नियमित किया जाता है तथा शरीर की सुषुप्त शक्तियों को जागृत किया जाता है।
हस्त मुद्राएं तत्काल ही असर करना शरू कर देती है। जिस हाथमें ये मुद्राएं बनाते है , शरीर के विपरीत भाग में उनका तुरंत असर होना शरू हो जाता है। ये मुद्राएं किसी भी तरह कर सकते है। वज्रासन,सुखासन अथवा पद्मासन में बैठकर करना अधिक लाभ मिलता है। इन मुद्राओ को १० मिनिट से शरू करके ३० से ४५ मिनिट तक करने से पूर्ण लाभ मिलता है।
हस्त मुद्राएं तत्काल ही असर करना शरू कर देती है। जिस हाथमें ये मुद्राएं बनाते है , शरीर के विपरीत भाग में उनका तुरंत असर होना शरू हो जाता है। ये मुद्राएं किसी भी तरह कर सकते है। वज्रासन,सुखासन अथवा पद्मासन में बैठकर करना अधिक लाभ मिलता है। इन मुद्राओ को १० मिनिट से शरू करके ३० से ४५ मिनिट तक करने से पूर्ण लाभ मिलता है।
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